गांधी और सावरकर के राम



भगवान श्री राम भारत और भारतीयों के आदर्श पुरुष हैं।  इसमें कोई संशय नहीं है, क्योंकि दो अच्छरों के युग्म से बना 'राम'  कहने को एक शब्द भर है पर इसके मायने बहुत बड़े हैं।  क्यों की राम को समझने के लिए राम में रमना पड़ेगा।  तभी तो गोस्वामी तुलसी दास जी लिखते है-

 '' राम रमापति कर धनु लेहूं।  खैंचहु मिटै मोर संदेहू।।''

अर्थात ।  हे राम,  हे लक्ष्मीपति धनुष को हाथ में लिजिए और इसे खीचिए ताकि हमारा संदेह मिटे।  कर में धनुष लिए राम भारतीय संस्कृति के मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, तो सनातन धर्म के प्रतिक भी है श्री राम।  खैर श्री राम और श्री राम के अस्तित्व पर राजनीति भी खूब होती है।  दूसरे शब्दों में कहें तो धर्म धूरी राम सियासत की धूरी बन चुके हैं।  लेकिन राष्ट्रपित महात्मा गांधी के लिए राम का महत्व क्या है, आखिर क्यों वो ता उम्र रघुपति राघव राजा राम गाते रहे।  आइए जानते हैं  कि जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने  हे राम!  क्यों कहा...।

 

प्रखर समाजवादी, कुशल रानीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी डा. राममनोहर लोहिया कहते हैं- ' जब महात्मा गांधी ने किसी का नाम लिया तो राम का ही क्यों लिया।  वह शिव का भी नाम ले सकते थे और कृष्ण का भी,  पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।  जानते हैं क्यों,  क्योंकि अनंत शक्ति अहंकार की जननी होती है, लेकिन असीम शक्ति के बावजूद राम संयमित थे।   राम मेंं सबको साथ लेकर चलने का कुशल नेतृत्व था।  राम सामाजिक हैं, राम लोकतांत्रिक हैं,  वे करुणा को जानते है।  जब वह घर से वन के लिए निकले थे तब साथ में सीता और लक्ष्मण थे।    14 वर्ष बाद जब अयोध्या लौटे तो उनके पास विशल सेना थी।  'राम परहित सरहित धर्म नहीं भाई'  में विश्वास रखने वाले थे। 

 

दर असल राम देश की एकता और अखंडता के प्रतीक थे।  महात्मा गांधी ने भी राम के जरिए भारत के सामने एक मार्यादित तस्वीर रखी।  बापू (गांधी) उसी राम राज्य के समर्थक थे  जिसकी नींव शताब्दियों पूर्व श्री राम ने रखी थी।  जहां लोकहित सर्वोपरि था।  

   गांधी की तरह लोहिया भी भारत मां से मांगते हैं-  कहते हैं-'  हे माता  हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय राम का कर्म और वचन दो।' 

  गांधी की तरह ही वीर सावरकर भी कहते हैं- भगवान श्री राम मानव समजा के आदर्श हैं।   रामायण लोकतंत्र का आदि राम  है।  कुछ इसी तरह पंडित दीन दयाल उपाध्याय कहते हैं - जनतंत्र में सत्ता के प्रति उच्चस्तर की निराशक्ति आवश्यक है।  भगवान राम की तरह जनतंत्र में राजनितिज्ञ को  आह्वान मिलने पर सत्तास्वीकार करने और क्षित की चिंता किए बिना उसका परित्याग कर दने के लिए भी सदैव तैयार रहना चाहिए।